Friday, February 1, 2008

अपनी जुबान से बताये.. वो समझेगी कैसे..
नजर के सामने हो ना हो, पर भुलाए कैसे..

घर सजा देंगे अभी, अगर होसला पक्का है..
फिर साथमे हो एकसाथ, तो घर बिखरेगा कैसे..
साथ हमारा आपकी आसूओंको रोक दे सकता है..
आजमानेवाला नही कोई.. रोकु मैं कैसे..

आपकी नजरोंसे देखते है.. कौन ये समझेगा..
इस किनारेको आपकी लहरे पसंद है..ये बताए कैसे..

लिख दिया मन की बाते हसते खेलते..
सच है ये कहानि, झुठ लगे उसे जैसे...

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